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Premanand ji Maharaj was born into a simple and deeply religious Brahmin family in Akhri Village, Sarsol Block, Kanpur, Uttar Pradesh. His name was Aniruddh Kumar Pandey. His family was devout, with a lineage that valued spiritual life. His parents, Shri Shambu Pandey and Shrimati Rama Devi, were deeply devoted to serving saints and practicing spiritual rituals, which inspired a love for the divine in him from a young age.
Even as a child, Maharaj Ji was drawn to prayers and holy texts. He started questioning the purpose of life and found comfort in spiritual teachings. This led him to explore more about spirituality, reading texts like the Gita Press Publication, Shri Sukh Sagar.
As he got older, his longing for spiritual fulfillment grew deeper. At just thirteen years old, he set off on a pilgrimage by himself, leaving his family behind in search of divine wisdom. This surprised his family at first.
He followed strict disciplines of celibacy and later became a monk, leaving behind worldly attachments for spiritual growth. He spent time by the Ganges River, finding peace in nature despite its challenges.
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His journey from being a seeker to a devotee was marked by spiritual experiences. He felt drawn to Vrindavan, where he immersed himself in devotional practices guided by saints. He found deep love for the divine through devotional music and stories.
In Vrindavan, he found his spiritual home and became part of the Radha Vallabh Sampradaya, following the teachings of his spiritual guides and dedicating himself to serving them. He learned sacred mantras and practiced unwavering devotion to Shri Radha.
For a decade, he dedicated himself to serving his spiritual guide with utmost devotion, embodying the essence of love and devotion. He led a modest life, relying on the kindness of the people of Vrindavan to sustain himself.
1. सत्य की राह में चलने वाले की निंदा बुराई अवश्य होती है। इससे घबराना नहीं चाहिए। यह आपके बुरे कर्मों का नाश करती है। जहां आपके लिए निंदा और बुराई हो, वहां आपके बुरे कर्मों का नाश हो जाता है।
2. स्वयं को ईश्वर को समर्पित कर दो। यह जीवन जैसा भी है, उनका दिया हुआ है। तुम्हारे पास जितने भी साधन संसाधन है, वह उनकी कृपा का प्रभाव है। तुम जिसका भोग कर रहे हो, वह सब ईश्वर का है। ऐसे विचार के साथ कर्म करो, जीवन यापन करो, जीवन सुखमय होगा।
3. ब्रह्मचर्य की रक्षा करें। ब्रह्मचर्य बहुत बड़ा अमृत तत्व है, मूर्खता के कारण लोग इसे ध्यान नहीं देते हैं।
4.हमें सच्चा प्रेम प्रभु से प्राप्त होता है। किसी व्यक्ति से क्या होगा, कोई व्यक्ति हमसे प्यार कर ही नहीं सकता क्योंकि वो हमे जानता ही नहीं तो कैसे करेगा।
5.कोई व्यक्ति तुम्हें दु:ख नहीं देता बल्कि तुम्हारे कर्म उस व्यक्ति के द्वारा दु:ख के रूप में प्राप्त होते हैं।
6.जिनके मुख में परमेश्वर का नाम नहीं है, वे जीवित तो हो सकते हैं, परन्तु मुंह से मरे हुए हैं।
7.डरो मत, गिरोगे भी तो आगे बढ़ना है, हजार बार भी गिरोगे तो भी आगे बढ़ना है।
8. इस भौतिक संसार में किसी के पास आपको पकड़ने की शक्ति नहीं है, आप ही हैं जो पकड़ते हैं और आप ही हैं जिन्हें छोड़ना है।
9.जिनके मुख में प्रभु का नाम नहीं है, वह भले ही जीवित है लेकिन मुख से मरा हुआ है।
10.दुखिया को न सताइए दुखिया देवेगा रोए, दुखिया का जो मुखिया सुने, तो तेरी गति क्या होए।
11. बहुत होश में यह मत सोचो कोई देख नहीं रहा। आज तुम बुरा कर रहे हो, तो तुम्हारे पुण्य खर्चा हो रहे हैं। जिस दिन तुम्हारे पुण्य खर्चे हुए, अभी का पाप और पीछे का पाप मिलेगा, त्रिभुवन में कोई तुम्हें बचा नहीं सकेगा।
12.प्रेम ही जीवन का सार है. प्रेम के बिना जीवन अधूरा है.
13.भक्ति ही ईश्वर को प्राप्त करने का साधन है
14.जीवन जीने के लिए, हमें कर्म करना होगा. कर्म करते समय हमें फल की चिंता नहीं करनी चाहिए. कर्म का फल ईश्वर ही देते हैं.
15.सच्चा सुख आत्मा में है. मन को शांत रखने से ही सुख प्राप्त होता है. ईश्वर की भक्ति से ही मन शांत होता है.
16. जो दूसरों को खुश करता है, वही सच्चा इंसान है.
17.अपनी गलतियों से सीखना ही जीवन का सबसे बड़ा सबक है.
18.कभी भी हार मत मानो, क्योंकि जीत हमेशा आपके इंतजार में रहती है.
19.ईश्वर पर भरोसा रखो और वह तुम्हारी हर मुश्किल को आसान कर देगा.
21.प्रभु का नाम जप संख्या से नहीं डूब कर करो।