Harivansh Rai 'Bachchan' Srivastav was born in 1907 in the village of Babupatti near Allahabad in a Kayastha family to Narayan Shrivastav and Saraswati Devi. He was the eldest son. In his childhood, he was fondly called 'Bachchan' because of his childlike ways. He was very fluent in the Hindi Language.
Harivansh Rai Bachchan started his education at a local village school. At the same time, he also started learning Urdu from Kayasth Paathshaalas. Later, he pursued higher education at Allahabad University and Banaras Hindu University. In 1941 he joined the English department of Allahabad University as a faculty and taught there till 1952. He then went to Cambridge for two years to do his doctoral thesis on W.B. Yeats, becoming the second Indian to get a Ph. D. in English Literature from this university. During this time, he also dropped Srivastav from his name and used Bachchan as his last name. He then returned to India and taught for a while, serving some time at the Allahabad Station of All India Radio.
Harivansh Rai Bachchan later moved to Delhi in 1955 to join the External Affairs Ministry as a Special Officer in the Hindi cell, translating official documents into Hindi. He served for ten years. During this time, he also worked on promoting Hindi as the official language of India and solving some of the significant works in Hindi like Macbeth, Othello, Bhagavad Gita, the results of W.B Yeats and the Rubaiyat of Omar Khayyam.
In 1966, Harivansh Rai Bachchan was nominated to the Rajya Sabha, and in 1969 he received the Sahitya Akademi Award. Seven years later, the Government of India awarded him the Padma Bhushan in recognition of his contribution to Hindi literature. In addition, he was also awarded the Soviet land Nehru Award, the Lotus Award of the Afro-Asian writers' conference, and the Saraswati Samman. The Uttar Pradesh government awarded him the "Yash Bharati" Samman in 1994. A postage stamp was released in 2003 in his memory.
At the age of 95, in 2003, Harivansh Rai Bachchan took his last breath. He was suffering from respiratory ailments. Four years later, his wife passed away at the age of 93.
Here are some Inspirational Quotes from Harivansh Rai Bachchan:
1. “कभी फूलों की तरह मत जीना, जिस दिन खिलोंगे बिखर जाओंगे, जीना हैं तो पत्थर बन के जियो,किसी दिन तराशे गए तो खुदा बन जाओंगे।
2. “आज अपने ख़्वाब को मैं सच बनाना चाहता हु, दूर की इस कल्पना के पास जाना चाहता हूँ।”
3. “उतर नशा जब उसका जाता, आती है संध्या बाला, बड़ी पुरानी, बड़ी नशीली नित्य ढला जाती हाला; जीवन की संताप शोक सब इसको पीकर मिट जाते; सुरा-सुप्त होते मद-लोभी जागृत रहती मधुशाला”
4. “तू न थकेंगा कभी, तू न थमेंगा कभी, तू न मुड़ेगा कभी, कर शपथ कर शपथ कर शपथ, अग्निपथ अग्निपथ, अग्निपथ”
5. “चाहे जितना तू पी प्याला, चाहे जितना बन मतवाला, सुन भेद बताती हूँ अंतिम, यह शांत नहीं होगी ज्वाला, मैं मधुशाला की मधुबाला!”
6. “एक बरस में एक बार ही जलती होली की ज्वाला, एक बार ही लगती बाज़ी, जलती दीपों की माला; दुनियावालों, किन्तु, किसी दिन आ मदिरालय में देखो, दिन को होली, रात दिवाली, रोज़ मानती मधुशाला”
7. मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ, शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ, हो जिस पर भूपों के प्रासाद निछावर,
मैं वह खंडहर का भाग लिए फिरता हूँ.
8. मैं जग जीवन का भार लिए फिरता हूँ, फिर भी जीवन में प्यार लिए फिरता हूँ, कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर मैं साँसों में दो तार लिए फिरता हूँ.
9. मैं स्नेह-सुरा का पान किया करता हूँ, मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ, जग पूछ रहा उनको, जो जग की गाते, मैं अपने मन का गान किया करता हूँ.
10. मैं छुपाना जानता तो जग मुझे साधु समझता, शत्रु मेरा बन गया हैं छल रहित व्यवहार मेरा |
11. गिरना भी अच्छा है औकात का पता चलता है, बढ़ते है जब हाथ उठाने को, अपनी का पता चलता है,
जिन्हें घुस्सा आता है वो लोग सच्चे होते है|
12. आज अपने ख़्वाब को मैं सच बनाना चाहता हूँ, दूर की इस कल्पना के पास जाना चाहता हूँ.
13. प्यार किसी को करना, लेकिन कहकर उसे बताना क्या अपने को अर्पण करना पर औरों को अपनाना क्या|
14. नफरत का असर देखो, जानवरों का बंटवारा हो गया, गाय हिन्दू हो गई और बकरा मुसलमान हो गया,
मंदिरों में हिन्दू देखे, मस्जिद में मुसलमान, शाम को जब मयखाने गया, तब दिखे इंसान।
15. मैं निज उर के उदगार लिए फिरता हूँ, मैं निज उर के उपहार लिए फिरता हूँ, है यह अपूर्ण संसार न मुझको भाता मैं स्वप्नों का संसार लिए फिरता हूँ |
16. बैठ जाता हूँ, मिट्टी पर अक्सर, क्योंकि मुझे मेरी औकात अच्छी लगती हैं, मैंने समन्दर से सीखा हैं, जीने का सलीका, चुपचाप से रहना और मौज में रहना |
17. इस पार प्रिय मधु तुम हो, उस पार ना जाने क्या होगा, यह चाँद उदित होकर नभ में, कुछ ताप मिटाता जीवन का, लहरा लहरा यह सखाए, कुछ शोक भुला देती मन का।
18. मैं जला हृदय में अग्नि, दहा करता हूँ, सुख-दुःख दोनों में मग्न रहा करता हूँ, जग भव-सागर तरने को नाव बनाए,
मैं भव मौजों में मस्त बहा करता हूँ |
19. मैं यौवन का उन्माद लिए फिरता हूँ, उन्मादों में अवसाद लिए फिरता हूँ, जो मुझको बाहर हँसा, रूलाती भीतर
मैं, हाय, किसी की याद लिए फिरता हूँ |
20. मैं और, और जग और, कहाँ का नाता, मैं बना-बना कितने जग रोज मिटाता, जग जिस पृथ्वी पर जोड़ा करता वैभव मैं प्रति पग से उस पृथ्वी को ठुकराता !
21. कर यत्न मिटे सब, सत्य किसी ने जाना ? नादान वहीं है, हाय, जहाँ पर दाना ! फिर मूढ़ न क्या जग, जो इस पर भी सीखे ? मैं सीख रहा हूँ, सीखा ज्ञान भुलाना !